प्रेरणादायक लघु कहानियाँ |a short story in hindi with moral

कहानी या कथा सुनाना, सीखने और सिखाने का सबसे रोचक और आसान तरीका है । कहानी (a short story in hindi with moral) से मनोरंजन ही नहीं होता बल्कि ज्ञान का विस्तार भी होता है। भारत में कथा और कहानी कहने की ऐतिहासिक परंपरा रही है । हम सब में से अधिकांश लोगों ने ऐतिहासिक गाथाएं जैसे रामायण महाभारत कहानियों के द्वारा ही सुनी हैं।

बच्चों को तो कहानी सुनना बहुत अच्छा लगता है । नटखट बच्चे भी घंटों चुपचाप कहानी सुन लेते हैं। पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियां तो लिखी ही राजकुमारों को शिक्षा देने के लिए गई थी। आपने अपने आसपास ऐसे कुछ लोग जरूर देखे होंगे जो कहानी सुनाने में बड़े माहिर होते हैं । ऐसे लोग विशेषकर बच्चों के बहुत करीब होते हैं, बच्चे भी उन्हें बहुत पसंद करते हैं ।

इसीलिए कहानी लिखना या सुनना ही नहीं बल्कि कहानी सुनाना भी एक बहुत अच्छी कला है । इसके जिंदगी में बड़े फायदे भी हैं, जैसे- सकारात्मकता फैलाना, ज्ञान का विस्तार करना, कंसंट्रेशन (कोकस) में वृद्धि, आपसी जुड़ाव, प्रेम-प्यार में वृद्धि आदि । तो चलिए कहानी की इसी यात्रा में चलते हैं हमारे आसपास की प्रेरणादायक लोगों की जीवन से जुड़ी कहानियां की यात्रा पर और प्रयास करते हैं उनसे कुछ सीखने की और अपने जीवन में धारण करने की ।

1. सचिन तेंदुलकर के बल्लेबाज बनने की कहानी- a short story in hindi with moral

सचिन को भारत में कौन नहीं जानता वह एक महान क्रिकेटर तो हैं ही, एक अच्छे इंसान भी हैं । स्वभाव से सीधे और सरल सचिन का जन्म महाराष्ट्र में एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ । उनका नाम उनके पिता रमेश तेंदुलकर ने अपने प्रिय संगीतकार सचिन देव बर्मन के नाम पर रखा था ।

सचिन को क्रिकेट खेलने की प्रेरणा उनके बड़े भाई से मिली थी । सचिन ने इस प्रेरणा को अपना जुनून बना लिया, उन्होने क्रिकेट को अपने जीवन में इस तरह अपना लिया था जैसे उनका सोना, उठना, बैठना, खाना सब क्रिकेट के साथ ही होता था।

सचिन को क्रिकेट के सबसे महान बल्लेबाज के रूप में हम सब जानते हैं । हम सब जानते हैं उन्होंने शतकों का शतक लगाया है । पर क्या आप जानते हैं कि वह अपने करियर के शुरुआत में एक बल्लेबाज नहीं बल्कि गेंदबाज बनना चाहते थे, जी हां सचिन एक तेज गेंदबाज बनना चाहते थे ।

एम आर एफ अकैडमी में उनके कोच ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी डेनिस लिली थे। डेनिस लिली ने उनको गेंदबाजी छोड़कर बल्लेबाजी पर फोकस करने की सलाह दी , और यहीं से सचिन के महान बल्लेबाज बनने के जीवन की शुरुआत हुई।

सचिन वास्तव में बनना तो एक तेज गेंदबाज चाहते थे, परंतु उनके कोच ने उनके हुनर की पहचान कर उन्हें अच्छी सलाह दी । सचिन ने भी उनकी सलाह का सम्मान किया और उसपर अमल किया । और आगे जो इतिहास बना उसे आप और हम सभी जानते हैं।

sachin tendulkar biography
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सचिन की कहानी से सीख

  • इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में आत्म मूल्यांकन का बहुत महत्व होता है, अर्थात अपने आप को पहचानने का, अपने अच्छे और खराब गुणों को पहचानने का । जैसे सचिन को अच्छा फीडबैक मिला, नेक सलाह मिली बल्लेबाज बनने की, उन्होंने उसके अनुसार अपना आत्म मूल्यांकन किया और अपने में सुधार करते हुए उसे अपने जीवन में लागू किया
  • हमें भी अपने जीवन में ऐसा अवश्य करना चाहिए । अच्छे और सकारात्मक फीडबैक (सलाह) का हमेशा स्वागतकर अपना मूल्यांकन करना चाहिए और उस पर मेहनत करनी चाहिए तब सफलता हमें जरूर मिलेगी।

2. अरुणिमा सिन्हा : एवरेस्ट चढ़ने वाली पहली दिव्यांग महिला

जीवन में गिरना, हार जाना, असफलताओं का आना तो लगा ही रहता है । परंतु तब क्या हो जब जीवन ही समाप्त सा लगे, चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा छा जाए, ऐसी परिस्थिति आ जाए जिसकी कभी कल्पना ही ना की हो।

ऐसी ही परिस्थितियों से दो-चार हुई आज की हमारी कहानी की प्रेरणास्रोत अरुणिमा सिन्हा, अरुणिमा सिन्हा जो अपने साहसिक कार्यों के लिए दुनिया में प्रसिद्ध हो गई। आइए जानते हैं उनके जीवन की घटना को और उस इतिहास को जो उन्होंने दर्द से निकलकर बनाया।

अरुणिमा सिन्हा के बारे में (About arunima sinha )

अरुणिमा सिन्हा का जन्म 1988 में अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश में हुआ। वो राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी रहीं और 2012 से सीआईएसफ में हेड कांस्टेबल पद पर कार्यरत हैं।

12 अप्रैल 2011 को उनके जीवन के वो घटना घटी जिसने उनका जीवन ही बदल दिया । उस दिन लखनऊ से दिल्ली जा रही ट्रेन में यात्रा के दौरान बदमाशों ने उनसे लूटपाट की कोशिश की, और विरोध करने पर उन्हें चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया । जिसमें उन्हें गंभीर चोटें आई और उनको अपना पैर गंवाना पड़ा। यही वह परिस्थिति थी जहां अधिकांश लोग निराशा, हताशा और डिप्रेशन में चले जाते हैं, वो हमेशा के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं। अरुणिमा ने इस परिस्थिति में वह साहसिक निर्णय लिया जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

अस्पताल से हिमालय तक (Arunima sinha in hospital)

जी हां अरुणिमा जो एक पैर गवां चुकी थी और दूसरे पैर में रॉड डाली गई थी शरीर में मल्टिपल फ्रैक्चर थे । ऐसी स्थिति में उन्होंने एक पर्वतारोही बनकर माउंट एवरेस्ट फतह करने का निर्णय लिया। उन्होंने निर्णय ही नहीं लिया, अपनी कड़ी मेहनत से एक पैर चले जाने के ठीक 2 साल के अंदर ही 21 मई 2013 को माउंट एवरेस्ट पर चढ़कर इतिहास रच दिया। उनकी संकल्प शक्ति इतनी मजबूत थी कि वो अस्पताल से डिस्चार्ज होकर सीधे पर्वतारोही बछेंद्री पाल से मिलने चले गईं थीं।

अरुणिमा सिन्हा, एवरेस्ट विजय करके एवरेस्ट विजय करने वाली दुनिया की पहली दिव्यांग महिला बन गई । किसी ने सच ही कहा है-

कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।

अरुणिमा की जीवन की कहानी उनकी जुबानी –

अरुणिमा की कहानी से सीख | moral lesson of the story –

इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि जीवन में बड़ी से बड़ी बाधा को भी हिम्मत और हौसलों से पार किया जा सकता है । या कहें पार ही नहीं किया जा सकता बल्कि उसे सीड़ी बनाकर एक बड़ा मुकाम हासिल किया जा सकता है।

अरुणिमा की कहानी हमें बड़ी से बड़ी बाधा में घोर निराशा और अंधेरे से निकलने का सूत्र देती है । अरुणिमा से हमें दृढ़ संकल्प, धैर्य, सतत अभ्यास और अद्भुत सकारात्मकता की सीख मिलती है

“वो स्वयं कहती हैं – जैसा हम सोचते हैं वैसा ही बनते जाते हैं।”

MCQ-

1. arunima sinha se humko kya sikhne mila

दृढ़ संकल्प, धैर्य, सतत अभ्यास और अद्भुत सकारात्मकता

2. arunima sinha ke charitra ki visheshtayen bataye

दृढ़ संकल्प, धैर्य, सतत अभ्यास और अद्भुत सकारात्मकता

3. arunima sinha dwara suru ki gai academy kaha h

Shahid Chandrashekhar Azad Viklang Khel Academy– [New Delhi]

4.Who offered Arunima Sinha scholarship to meet her financial requirements?

Tata Group

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